Monday 24 October 2011

स्वस्थ रहने के लिए योग ही क्यों? (भाग 2)

Click Here!

(पिछले अंक से आगे....)  अब जहां तक आसनों का ताल्लुक है, ये योगासन लगभग चालीस-पचास वर्षों से ही अधिक प्रचार में आये हैं. इससे पूर्व तोह योगाभ्यासी लोग इन्ह योग की क्रिया मानकर सर्वसाधारण से गुप्त ही रखते थे, किन्तु अब कुछ उदारवादी योगाभ्यासियों ने जनसाधारण में भी इनका प्रचार बढाया है. आसन 'योग' का तीसरा अंग है, और समग्र रूप से आसनों को हठयोग की संज्ञा दी जाती है. योगसाधन के लिए शरीर का शुद्ध और स्वस्थ होना आवश्यक है, क्योंकि शरीर शुद्ध होने पर ही मन और बुद्धि शुद्ध होती है. यदि शरीर शुद्ध और अस्वस्थ रहेगा तो मन और बुद्धि शुद्ध नहीं रह पाएंगे. शारीरिक आरोग्य और शुद्धि वस्तुतः 'योगासन' के लिए पहली सीढ़ी होती है. इसलिए हमारे पूर्वजों ने आसनों का आविष्कार भारी बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिकता से किया है. शरीर और स्वस्थ्य-सम्बन्धी तथ्यों को ध्यान में रखकर आसन विधि की रचना में हमारे पूर्वजों ने भारी दूरदर्शिता और सूक्ष्म बुद्धि का परिचय दिया है.

वास्तव में अतिरिक्त चिंता, भावुकता, समस्याओं पर अधिक सोच विचार और परेशानियां हमारे स्नायुओं को कमजोर बना देती हैं और एस कमजोरी के कारन ही वे तनाव के शिकार होते हैं. इतना ही नहीं, इस स्नायुविक दुर्बलता का असर हर्मारे शरीर के मुख्या अंगों के कार्य को भी विकृत बना देता है. मधुमेह, ऊँचा रक्तचाप, हृदय के रोग, गठिया, कब्ज, अनिद्रा आदि सब स्नायुविक दुर्बलता से ही पैदा होने वाले विकार हैं.

स्नायु दुर्बलता का एकमात्र इलाज है स्नायुओं को आराम देना अथवा ढीला छोड़ना, जिसे अंग्रेजी में 'रेलेक्सेसन' कहा जाता है. 'रेलेक्सेसन' या स्नायु-विश्राम का कार्य योगासनों के व्यायाम से अनायास ही पूरा हो जाता है, क्योंकि प्रत्येक आसन-मुद्रा में मांसपेशियों और स्नायुओं पर खिंचाव पड़ता है और उसी के जोड़ की दूसरी मुद्रा में वे पेशियाँ और स्नायु ढीले हो जाते हैं और विश्राम पाते हैं. अतः आसन-व्यायाम से स्वाभाविक रूप से विश्राम पाकर स्नायुमंडल सशक्त बनता है, शरीर का तनाव समाप्त हो जाता है, साथ ही तनाव से उत्त्पन्न होने वाले दुसरे गंभीर विकार भी ठीक होते हैं.

योगासनों के लिए कोई उम्र की कैद नहीं होती.  आप चाहे जिस उम्र से गुजर रहे हों- आसनों का अभ्यास प्रारंभ कर सकते हैं. यों बारह- तेरह वर्ष की उम्र तक के बच्चों को आसनों की अथवा किसी भी दुसरे व्यवाम की आवश्यकता नहीं होती. इस उम्र  में शारीरिक धातुओ के मुलायम होने के कारन बालक बहुत जल्दी आसन सिद्ध कर लेता है. लेकिन इसके बाद युवावस्था में भी आसन अभ्यास प्रारंभ करने में कोई दिक्कत नहीं आती हां प्रौढ़ावस्था के लोगो को शुरू शुरू में कुछ मामूली सी अड़चन मालूम होगी वह सिर्फ इतनी की किसी भी आसन को एक या दो दिन में ही सिद्ध नहीं कर सकेगे l जैसे, पश्चिमोत्तानासन में टांगों को फैलाकर पैर के अंगूठों को हाथ से छूना और फिर धीरे-धीरे कमर को झुककर सर को घुटनों तक लाना होता हैं. तो शुरू-शुरू में आप कमर को ज्यादा न झुका सकेंगे. कभी-कभी आपको यह भी महसूस होगा की आप एस आसन को नहीं कर सकेंगे; लेकिन कुछ ही समय के अभ्यास से यह आपको सिद्ध हो जायेगा. इस बात को हमेशा ध्यान में रखिये की अभ्यास व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता हैं. (अगले अंक में जारी ......)
Click Here!
Click Here!

Friday 21 October 2011

स्वस्थ रहने के लिए योगासन ही क्यों? (भाग १)

हमारे यहाँ व्यायाम के नाम पर आम रिवाज दंड और बैठक लगाने का है. दंड बैठक बलवर्धक भले ही हों, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्यवर्धक तो हैं ही नहीं, अपितु शारीरिक स्वस्थ्य के लिए वे हानिकारक सिद्ध होते है, क्यों की इन व्यायामों में गर्दन, छाती, भुजाओं तथा जाँघों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. दबाव की वजह से इन स्थानों पर इतना ज्यादा रक्त आ जाता है की पेशियों के बारीक-बारीक तंतु रक्त की अधिकता की वजह से फट जाते हैं और वहां खून जमा हो जाता है. इसी वजह से कसरती व्यक्ति की भुजा, छाती और जांघो की मांसपेशियां उभरकर सख्त हो जाती हैं.

लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टी से पेशियों के अन्दर लचक होनी चाहिए ताकि वे अपना काम ठीक तरीके से कर सकें. सख्ती से तो कुछ समय बाद पेशियों की क्रियाशीलता ही रुक जाती है. इसके अतिरिक्त इन व्यायामों से दिल और फेफड़ो पर भी बहुत जोर पड़ता है - दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है, सांस की गति बढ़ जाती है. कहना ना होगा कि इन व्यायामों से शरीर को जो स्थायी नुक्सान होता है, वह फिर जीवन में कभी पूरी नहीं हो पाती है.

आपने कलाबाजी करने वाले कलाकारों को देखा होगा- वे उलटे लटक जाते हैं, उलटे खड़े होकर हाथों के बल चलते हैं, टांगों को मोड़-कर हाथों के बल चलते हैं, टांग मोड़-कर बिच्छू कि तरह चलते हैं, कहीं मोर कि तरह तो कहीं ऊँट कि तरह भी चल लेते हैं. इन लोगों के शरीर का संतुलन बड़े गजब का होता है. सर पर दो-दो, चार-चार घड़े रखकर वे एक पैर से खड़े बांस पर भी खड़े हो जाते हैं. असल में इनका शरीर रबड़ कि तरह लचीला और साधा हुआ होता है. ये कालाबाज लोग न तो जिम ही जाते हैं और न ही कुश्ती लड़ते हैं. इनके शरीर में आपने कभी मोटापन या मांस-पेशिया उभरी हुयी नहीं देखी होंगी. ये हमेशा स्वस्थ और निरोग रहते हैं. ये होता है आसनों के प्रभाव से. वैसे तो इनकी कला के अभ्यास को योगासन तो नहीं कह सकते हैं, लेकिन सिद्धांत योगासनों का ही होता है. अर्थात खिंचाव के व्यायाम द्वारा पेशियों में लचक पैदा करना और जैसा कि प्रायः योगासनों में होता है ये लोग भी रीढ़ कि हड्डी का ही व्यायाम अधिक करते हैं.

क्योंकि कलाबाजी ही इनका पेशा होता है इसलिए बचपन से ही इन्हें कलाबाजी करने का अभ्यास कराया जाता है और युवा होने पर ये कलाकार शरीर की मांस-पेशियों का सञ्चालन मन मर्जी से कर सकते हैं. योगासनों में भी अलग अलग अंगों और शरीर के अवयवों की मांस-पेशियों और स्नायुंवो में खिंचाव पैदा करते हैं. किन्तु यह खिंचाव पेशियों और स्नायुओं पर कोई घंटे आधे घंटे नहीं बल्कि कुछ मिनट ही किया जाता है. इस प्रकार के खिचाव से पहले अंग विशेष की पेशिओ  की रक्त वाहिनियो में खून कम होता है  और खिचाव कम होने पर वहां अधिक रक्त आता है जिससे अमुक स्थान का अंग को अच्छा पोषण मिलाता है.

इस प्रकार प्रतिदिन आसन के अभ्यास से शरीर के स्नायु (नसें)  और पेशियाँ लचीली बनती जाती हैं जिससे उनकी क्रियाशीलता बनी रहती है, रक्त प्रवाह शुद्ध और स्वच्छ रहता है. इसके अतिरिक्त आसनों द्वारा रीढ़ की हड्डी की अच्छा व्यायाम होता है और मेरु-दंड से अनैक्छिक स्नायु भी निकलते हैं, इसलिए अनैक्छिक पेशियों और अनैक्छिक स्नायुओं का व्यायाम भी अपने आप ही हो जता है. जबकि संसार के किसी भी दुसरे व्यायाम में अनैक्छिक पेशियों और अनायुओं को हरकत देने की कोई भी विधि नहीं है................

Friday 14 October 2011

अच्छा स्वास्थ्य किसे कहते हैं?

एक कहावत है -

       "प्रथम सुख निरोगी काया"

सांसारिक सुखों की गिनती में मानव का उत्तम स्वास्थ्य ही सर्वोपरि है.अच्छे स्वास्थ्य से वंचित रहकर जीवन के जीने में कोई आनंद नहीं रह जाता. अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का शरीर हर समय हल्का-फुल्का और मन में प्रसन्नता व्याप्त रहती है. अच्छे स्वास्थ्य की दशा में  व्यक्ति स्वच्छंद  रूप से उछलता, कूदता  है, मुस्कुराता है, उत्साह और चाव से इधर उधर खूब घूमता है. हर काम  तेजी और फुर्ती से करता है. जिन्दादिली और हौसला उसमें भरपूर होता है.

हमारा शरीर अनेक धातुओं से बना है है, जैसे  रस, रक्त, हड्डियां, मांस पेशियाँ, स्नायु, चर्बी वगैरह. इन सबमें एक संतुलन कायम रहना चाहिए. इनका संतुलन ही स्वास्थ्य है. महर्षि सुश्रुत ने कहा है:-

"समदोशः समग्निश्च, समधातु मलक्रियः
प्रसंनात्मेंद्रियाम्नाह स्वस्थ इत्यामिधेयते.

जिस व्यक्ति के दोष(वात -पित्त-कफ्फ) अग्नि(जठराग्नि) धातुएं  संतुलित हैं और मल विसर्जन क्रिया सही है, जिसकी आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न रहते हैं, वही व्यक्ति पूर्णतया स्वस्थ है.

अच्छे स्वास्थ्य के लिए दो बातें अत्यंत अवश्यक हैं. पहली यह की व्यक्ति की पाचन क्रिया बिलकुल ठीक व दुरुस्त हो. दूसरी यह की उसका मलमूत्र नियमित रूप से शरीर से बहार विसर्जित होता रहे. पाचन क्रिया ठीक व सही होने का अर्थ यह है कि व्यक्ति जो कुछ भी खाए, वह पुरे तौर पर हजम होकर शरीर में घुल मिल जाये अर्थात थोड़ा बहुत जो खाया पिया है, वह अंग को लगे ताकि शरीर कि आवश्यकता के अनुसार पूरा पोषण और शक्ति मिलती रहे.

मलमूत्र विसर्जन ठीक होना इसलिए  आवश्यक है क्योंकि  कि यह शरीर का कूड़ा करकट होता है जिसमें गंदगी भरा माद्दा भरा होता है. इस माद्द्दे और गंदगी के विसर्जित होते रहने पर ही शरीर शुद्ध, स्वस्थ और स्वच्छ रह सकता है. रोगों के बारे में यह कटु सत्य है कि पेट कि खराबी कि कारण ही इनका जन्म होता है. चाहे वह पाचन क्रिया ठीक न होने से हो या अपच से.

स्वास्थ्य रच्छा सम्बन्धी उपाय और नियम आदि जानने के लिए हमें अपने शरीर  के बारे में भी जानना अत्यंत आवश्यक है. यदि आप व्यापारी हैं तो व्यापर के सम्बन्ध में जानकारी हासिल करने कि कोशिश करते है कि फलां माल कहाँ से आता है, कहाँ से सस्ता पड़ता है. बाजार भाव क्या है और आप किस तरह मुनाफा कमा सकते हैं. हर पेशे का व्यक्ति अपने पेशे की गहराईऔर बारीकियों का पूरा पूरा ज्ञान हासिल करता है, लेकिन क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है की हम अपने निज के शरीर के बारे में कुछ ही नहीं जानते हैं? उस शरीर के सम्बन्ध में हम बिलकुल अंधकार में रहते हैं जिसे लेकर हमारे समस्त जीवन का व्यापर चलता है. अपने शरीर के बारे में हमारा यह अज्ञान बहुत बार हमारे बुरे स्वास्थ्य और रोगी होने का कारण होती है. अतः हमें अपने शरीर के बारे में मुख्य और मोटी बातें जान लेना अत्यंत आवश्यक हैं.

पाठकों, योग के सम्बन्ध में और अधिक जानकारी अगले अंक में...