Friday 21 October 2011

स्वस्थ रहने के लिए योगासन ही क्यों? (भाग १)

हमारे यहाँ व्यायाम के नाम पर आम रिवाज दंड और बैठक लगाने का है. दंड बैठक बलवर्धक भले ही हों, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्यवर्धक तो हैं ही नहीं, अपितु शारीरिक स्वस्थ्य के लिए वे हानिकारक सिद्ध होते है, क्यों की इन व्यायामों में गर्दन, छाती, भुजाओं तथा जाँघों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. दबाव की वजह से इन स्थानों पर इतना ज्यादा रक्त आ जाता है की पेशियों के बारीक-बारीक तंतु रक्त की अधिकता की वजह से फट जाते हैं और वहां खून जमा हो जाता है. इसी वजह से कसरती व्यक्ति की भुजा, छाती और जांघो की मांसपेशियां उभरकर सख्त हो जाती हैं.

लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टी से पेशियों के अन्दर लचक होनी चाहिए ताकि वे अपना काम ठीक तरीके से कर सकें. सख्ती से तो कुछ समय बाद पेशियों की क्रियाशीलता ही रुक जाती है. इसके अतिरिक्त इन व्यायामों से दिल और फेफड़ो पर भी बहुत जोर पड़ता है - दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है, सांस की गति बढ़ जाती है. कहना ना होगा कि इन व्यायामों से शरीर को जो स्थायी नुक्सान होता है, वह फिर जीवन में कभी पूरी नहीं हो पाती है.

आपने कलाबाजी करने वाले कलाकारों को देखा होगा- वे उलटे लटक जाते हैं, उलटे खड़े होकर हाथों के बल चलते हैं, टांगों को मोड़-कर हाथों के बल चलते हैं, टांग मोड़-कर बिच्छू कि तरह चलते हैं, कहीं मोर कि तरह तो कहीं ऊँट कि तरह भी चल लेते हैं. इन लोगों के शरीर का संतुलन बड़े गजब का होता है. सर पर दो-दो, चार-चार घड़े रखकर वे एक पैर से खड़े बांस पर भी खड़े हो जाते हैं. असल में इनका शरीर रबड़ कि तरह लचीला और साधा हुआ होता है. ये कालाबाज लोग न तो जिम ही जाते हैं और न ही कुश्ती लड़ते हैं. इनके शरीर में आपने कभी मोटापन या मांस-पेशिया उभरी हुयी नहीं देखी होंगी. ये हमेशा स्वस्थ और निरोग रहते हैं. ये होता है आसनों के प्रभाव से. वैसे तो इनकी कला के अभ्यास को योगासन तो नहीं कह सकते हैं, लेकिन सिद्धांत योगासनों का ही होता है. अर्थात खिंचाव के व्यायाम द्वारा पेशियों में लचक पैदा करना और जैसा कि प्रायः योगासनों में होता है ये लोग भी रीढ़ कि हड्डी का ही व्यायाम अधिक करते हैं.

क्योंकि कलाबाजी ही इनका पेशा होता है इसलिए बचपन से ही इन्हें कलाबाजी करने का अभ्यास कराया जाता है और युवा होने पर ये कलाकार शरीर की मांस-पेशियों का सञ्चालन मन मर्जी से कर सकते हैं. योगासनों में भी अलग अलग अंगों और शरीर के अवयवों की मांस-पेशियों और स्नायुंवो में खिंचाव पैदा करते हैं. किन्तु यह खिंचाव पेशियों और स्नायुओं पर कोई घंटे आधे घंटे नहीं बल्कि कुछ मिनट ही किया जाता है. इस प्रकार के खिचाव से पहले अंग विशेष की पेशिओ  की रक्त वाहिनियो में खून कम होता है  और खिचाव कम होने पर वहां अधिक रक्त आता है जिससे अमुक स्थान का अंग को अच्छा पोषण मिलाता है.

इस प्रकार प्रतिदिन आसन के अभ्यास से शरीर के स्नायु (नसें)  और पेशियाँ लचीली बनती जाती हैं जिससे उनकी क्रियाशीलता बनी रहती है, रक्त प्रवाह शुद्ध और स्वच्छ रहता है. इसके अतिरिक्त आसनों द्वारा रीढ़ की हड्डी की अच्छा व्यायाम होता है और मेरु-दंड से अनैक्छिक स्नायु भी निकलते हैं, इसलिए अनैक्छिक पेशियों और अनैक्छिक स्नायुओं का व्यायाम भी अपने आप ही हो जता है. जबकि संसार के किसी भी दुसरे व्यायाम में अनैक्छिक पेशियों और अनायुओं को हरकत देने की कोई भी विधि नहीं है................

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